Sunday, November 30, 2008

अफ़्सोस

२०० लोग जाँबहक हो गये १६ वीर शहीद हो गये परन्तु एक भी नेता नहीं मरा और न ही घायल हुआ। राज और बाल दोनो ठाकरे घरों में दुबके रहे। जो आये भी वो अपनी - अपनी रोटियाँ सेंकते नजर आये। शहीदों और मौत की अगोश में गये बेगुनाह लोगों के प्रति अपनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते समय एक मोमबत्ती नेताओं की दिवंगत आत्माओं की इस देश से मुक्ति के लिये भी जलायें। इनके लिये विश्व एड्स दिवस पर हमारी और आपकी हार्दिक शुभकामनायें।
इस सन्देश कॊ देश के कॊने - कोने में न पहुँचा कर चौराहे - चौराहे पर पहुँचायें । क्योंकि कोनें में गयी चीज कोनें मे ही रह जाती है।
अफ़्सोस सहित
आपका
अमिताभ

Wednesday, October 22, 2008

क्या यह राष्ट्रद्रोह नहीं है?

जो महाराष्ट्र में पिछले दो तीन दिनों में हुआ और जिस पर राजनैतिक दलों में जिस प्रकार का आपराधिक मतवैभिन्य देखने को मिला,वह देश के लोकतान्त्रिक, गणतांत्रिक एवं संघीय भविष्य पर बहुत बड़ा प्रश्न चिह्न खड़ा करता है। एक व्यक्ति, एक प्रकार से देश की संवैधानिक व्यवस्था की धज्जी उड़ा देताऔर सरकार मूक दर्शक बन कर इधर उधर लाठी पटकने का नाटक करती है। अगर हम जम्मू और कश्मीर में इसी तरह की गतिविधियों को अलगाववाद और आतंकवाद कहते हैं तो यहाँ क्यों नहीं? क्या एक व्यक्ति की सनक राष्ट्र की अस्मिता से ऊपर है? निर्दोष और निरपराध लोगों पर क्षेत्रीयता के नाम पर हमला किस राजनैतिक गतिविधि के अंतर्गत है इसका जवाब मिलाना ही चाहिए अन्यथा यह लापरवाही देश की एकता एवं अखंडता के लिए घातक हो सकती है। मेरी दृष्टि में और मैं समझता हूँ की अधिकांश देशवासियों की दृष्टि में देश की संवैधानिक व्यवस्था का अनादर करने वाला व्यक्ति राष्ट्रद्रोही है तथा उसके साथ वही व्यवहार होना चाहिए जो एक राष्ट्रद्रोही के साथ होता है।